B.A.M.S 3rd Professional | चरक संहिता उत्तरार्ध paper-3
1
‘अग्निवर्चसम’ कहा गया है-
अग्निवेश
पुनर्वसु
धन्वन्तरि
च्यवन ऋषि
2
महागदं महावेगमग्निवच्छीघ्रकारि च -
रक्तपित्त
ज्वर
गुल्म
प्रमेह
3
रक्तपित्त का हेतु नहीं है-
अम्ल
कटु
लवण
कषाय
4
“धातुर्धातोर्धातो: प्रसिच्यते-
ज्वर
कुष्ठ
रक्तपित्त
प्रमेह
5
रक्तपित्त में पित्त की रक्त से साम्यता किस रूप में नहीं है-
संयोगात
दूषणात
गन्धवर्णयो सामान्यात
समभावात
6
कषायाभ रक्तपित्त है-
वातिक
पैत्तिक
श्लेष्मिंक
सन्निपातज
7
आश्विनं या महत्तेजो बलं सारस्वतं च या।
वीर्यमैन्द्र च या ................................।। ?
मद्य
जल
शिलाजीत
पारद
8
आचार्य चरकानुसार उदर रोगों की कष्टसाध्यता का उत्तरोत्तर क्रम है-
.कफ़ोदर > वातोदर > प्लीहोदर > सन्निपातोदर
वातोदर> कफ़ोदर > सन्निपातोदर> प्लीहोदर
वातोदर >कफोदर> प्लीहोदर > सन्निपातोदर
.कफ़ोदर > वातोदर > सन्निपातोदर> प्लीहोदर
9
प्रयोक्तव्यं मनोबुद्धिस्मृतिसंज्ञाप्रबोधनम्-
उन्माद
अपस्मार
.अतत्वाभिनिवेश
मूर्च्छा
10
मद्य के किस गुण के कारण राजयक्ष्मा में मद्यपान हितकर है?
मद्य के तीक्ष्ण गुण के कारण
मद्य के ऊष्ण गुण के कारण
मद्य के सूक्ष्म गुण के कारण
उपरोक्त सभी सत्य
Answer Sheet:
1
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3
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5
6
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10
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चरक संहिता उत्तरार्ध paper-3
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